जाड़े में रात जल्द आ जाती है ...इसी जल्द रात में ...जल्दी से डिनर के बाद ..."बोरसी" ( आग ) के पास बैठ ...गप्प का मन करता है ...ज्यादा नहीं ...बस एक दो लोग ...बेहद करीबी ...अगर बहुत करीबी कोई खास एक हो तो मजा आ जाए ...गप्प - गप्प और गप्प ! एक लकड़ी से ..उस बोरसी के नीचे के आग को ऊपर करते रहना ...और गप्प चालु ...गप्प में विषय ऐसा हो - जैसे जो अनुपस्थित है ..उसकी निंदा ...निंदा भी ऐसी ...जो मै कहने वाला हूँ ..वही बात सामने वाले के मुह से निकल जाए ...जी भर परनिंदा ...
फिर अगली सुबह उस अनुपस्थित से ऐसे मुलाक़ात करना ...जैसे ..सारी रात हम दो ..मिलकर उसकी ही प्रसंशा कर रहे थे ...इस भय के साथ ...कहीं किसी रोज मै नहीं रहा तो वो दोनों दोस्त / भाई ..मेरी परनिंदा न शुरू कर दें ..
@RR - 29 December - 2013
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