Sunday, September 28, 2014

लिखना ...अब खून में घुस गया है .... :((


'लिखना' पहले आदत थी ...कुछ न कुछ ..कहीं भी ..जो मन में आया लिख दिया ...पर अब यह आदत खून में घुस चुकी है ...अब ऐसा लगता है ...बिना लिखे नहीं रह सकता ... हर 'लिखनेवाले' की एक अपनी शैली होती है ...मेरी भी कुछ होगी ..जो शायद मुझे नहीं पता ...लेकिन एक ही शैली में लिखने का यह डर होता है ..कहीं आपको पढने वाले आपसे 'उब' न जाएँ ..खैर ..यह प्रकृती का नियम है ..जो करीब आता है ..उससे एक उब हो जाती है ...पर अगर आप सही में मेरे चाहने वाले हैं ..फिर थोडा वक़्त दीजिये ..जो ढंग कहियेगा ..उसी ढंग से लिख दूंगा ...'गुंथे हुए आटा' की तरह प्रवृती है ...जो रूप देना चाहेंगे ..उसी में ढल जाऊंगा .."इलेक्ट्रोनिक युग का आदमी हूँ ...बिना खुद का प्रचार किये हुए भी ..एक वर्चुअल स्टारडम भी महसूस किया हूँ " 
याद है... बचपन में ...'माँ / दादी / रसोईया' रोटी बना रहे होते थे ...और वहीँ पास में हम 'गुंथे हुए आटे' से 'चिड़िया'...फिर 'माँ / दादी' से जिद करना ...इसे भी आग में पका दो ..:))
एक जिद तो कीजिए ...मेरी परिधी को ध्यान में रखते हुए ..:))

@RR

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