आज राष्ट्रकवी श्री रामधारी सिंह दिनकर की जयन्ती है - जिस कवी की रचनाओं की धूम पुरे विश्व में रही हो - उनपर मै क्या लिखूं या न लिखूं - सिवाय इसके की - उनकी शब्दों को ही दोहराऊँ - वीर रस में डूबे उनके शब्द तो हमेशा से हमारे आपके मन को एक शक्ती देते आये हैं - अनायास ही उनकी जयन्ती की पूर्व संध्या पर उनकी बेहतरीन रचना जिसके लिए उन्हें भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार मिला - "उर्वशी" को पढ़ा - बड़े इत्मीनान से सारी रात पढ़ा - 'पुरुरवा' और 'उर्वशी' के बीच के संवाद को - 'पुरुरवा' की विशालता को देख ...'उर्वशी' पूछ बैठती हैं - "कौन पुरुष ..तुम" ...यह एक वाक्य का संवाद अपने आप में एक नारी के मन को कह देता है ....अद्वितीय रचना ...जहाँ कल्पना भी रुक जाती है ...थक हार कर शब्दों के साथ बह जाती है ...और उस विशाल सागर में मिल जाती है ...कभी फुर्सत में पढ़ें ...'उर्वशी' ....:))
वहीं से कुछ ...दिनकर जी की श्रधान्जली में ....
पर, न जानें, बात क्या है !
इन्द्र का आयुध पुरुष जो झेल सकता है,
सिंह से बाँहें मिलाकर खेल सकता है,
फूल के आगे वही असहाय हो जाता ,
शक्ति के रहते हुए निरुपाय हो जाता.
विद्ध हो जाता सहज बंकिम नयन के बाण से
जीत लेती रूपसी नारी उसे मुस्कान से.
.........
"रूप की आराधना का मार्ग
आलिंगन नहीं तो और क्या है?
स्नेह का सौन्दर्य को उपहार
रस-चुम्बन नहीं तो और क्या है?"
सिर्फ शब्दों के हेर फेर कर देने से कविता नहीं बन जाती - किसी भी कविता में अपनी कल्पना को उसके हद से भी आगे ले जाना पड़ता है - शब्दों से एक चित्र बनानी पड़ती हैं - और उसे अपने जीवन दर्शन से सजाना पड़ता है ...जो भी देखे मंत्रमुग्ध हो जाए ....
फिर से एक बार फिर ....इस महान साहित्यकार को नमन !
~~ दालान
23 September - 2013
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