Thursday, September 25, 2014

शिव ...

शिव सत्य हैं !
शिव सुन्दर है !
शिव शक्ती हैं !
शिव महेश हैं !
शिव नीलकंठ हैं !
शिव तिनेत्र हैं !
शिव भोले हैं !
शिव त्यागी हैं !
शिव कैलास हैं !
शिव काशी हैं !
शिव वैद्यनाथ हैं !
शिव हिम हैं !
शिव गंगा हैं !
शिव अनादि हैं !
शिव अनन्त हैं !
शिव विशाल हैं !
शिव नटराज हैं !
शिव ह्रदय हैं !
शिव कपूर गौरं हैं !
शिव रूद्र हैं !
शिव करुणा हैं !
शिव महामृत्युंजय हैं !
शिव अर्धनारीश्वर हैं !
शिव मिलन हैं !
शिव परमात्मा हैं !
शिव मेरी आत्मा हैं !
शिव मन में हैं ..... !!!
~ ११ अगस्त २०१३
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#. महाशिवरात्री - कुछ कुछ यूँ ही ...शिव के ध्यान में ...

मेरे गाँव में हम तीनो पट्टीदार के घर 'खपड़ा' वाले होते हैं - हालांकी एक चचेरे बाबा जो डॉक्टर थे - उन्होंने पांच छ साल पहले अपना 'पक्का' का घर बनवा लिया - मेरा घर आज भी 'खपड़ा' वाला है - उस घर में उत्तर पछिम कोना वाला रूम जो कभी दादी का होता था - वो हमें मिल गया ! उस रूम में एक बहुत ऊँचा और नक्कासी किया हुआ पलंग है ! एक ड्रेसिंग टेबुल ! दो तीन बढ़िया गद्दी वाला कुर्सी - और एक खूंटी - जिसके बगल में माँ पापा का एक पेयर फोटो , जो आज चौवालिस साल बाद माँ के नहीं रहने पर मैंने मंगवा लिया - पर उस फोटो को आज तक किसी ने छुआ तक नहीं - जब से टंगा - वहीँ रहा ! वहीं बगल में यदा कदा भगवान् के कैलेण्डर लगे होते थे - बचपन में - अक्सर पलंग से उन कैलेंडरों को देखा करता था - एक कैलेण्डर भगवान् विष्णु शेषनाग पर आराम फरमाते हुए और उनके पैर के पास लक्ष्मी - दुसरे कैलेण्डर में शिव पार्वती - ऐसे जैसे दोनों पेयर फोटो खिंचवाए हों ! धीरे धीरे - रोज देखते देखते शिव पार्वती वाला कैलेण्डर बढ़िया लगने लगा - विष्णु जी के पैर के पास लक्ष्मी को देख ऊपर से शेषनाग उतना बढ़िया नहीं लगता - चाईल्ड साइकोलोजी ..अब क्या कहा जाए ....दिमाग में घुस गया ..आजतक नहीं निकला ...पत्नी का हमेशा शिकायत ..आप 'हसबैंड' जैसा नहीं ..दोस्त जैसा रहते हैं ...अब हम उनको क्या समझाए ...हमको शेषनाग पर लेट ...आपको पैर के पास नहीं रखना ....मत दीजिये भाव ...जब ये फिलोसोप्फ़ी समझ में आयेगी ...तबतक देर 

थोडा बड़े हुए ...मुजफ्फरपुर में आज के दिन शिव की बारात गरीबनाथ मंदिर से निकलती थी - पापा से जिद कर के उनके साथ शिव का बरात देखने जाता था - सारे भुत वैताल उनके बाराती - मन में लगता था - कितने विशाल हैं - कोई भेद भाव नहीं ....:))
हमारे घर के समीप ही अरेराज एक जगह है - वहां हर महाशिवरात्री मेरे बाबा जाते थे - आज से करीब तेईस चौबीस साल पहले बाबा के साथ गया था - यह दिन ख़ास इसलिए बन गया - जब भी बाबा घर से बाहर निकलते - दादी उनके लिए पान लगा के दरवाजे पर - आज के दिन मेरे लिए भी पान बनाया गया था - शायद मेरे बड़े होने / परिपक्व होने की खुशी - हमदोनो बाबा - पोता मुह में पान दबाये और चल दिए 'शिव पर जल चढाने' ...:))
महाशिवरात्री के दिन ही एक बार हम कुछ दोस्त कलकत्ता से पटना लौट रहे थे - हावड़ा स्टेशन पर आपको थाली में 'भांग' बेचने वाले मिल जायेंगे - एक एक गोला सभी दोस्त दबा लिए - हावड़ा दानापुर ट्रेन में चढ़ गए - बाबा हो बाबा - आज तक याद है - बर्थ पर ऐसे लगा - जैसे हवा में उड़ रहे हैं - एक मित्र गीत गाने लगे - पूरा रात गीत ही गाते रहे - एक खिड़की के पास - हवा खाने लगा - पूरा रास्ता हवा खाया - टीटी कब आया - कब गया - किसी को कुछ नहीं पता - अगली सुबह सबने कसम खाया - अब जीवन में भांग नहीं ...हा हा हा !
अब शिव कैसे होंगे दिखने में - कह नहीं सकता - पर उनके जितने भी चित्र ..चित्रकारों ने बनाया ...उनके चहरे पर एक शांत भाव ..कोई छल नहीं ...पार्वती के लिए बराबर का दर्ज़ा ...जैसे इंसानों का अपना अपना व्यक्तित्व ..वैसे भगवान् लोग भी ....समुद्र मंथन हुआ ....विष कौन पिएगा ....शिव ! ज्यादा पढ़ा लिखा नहीं हूँ ...विष्णु के सभी अवतार को पढ़ा..सांसारिक मिडिया में ..विष्णु के अवतार छाए रहे - पर शिव के अवतार पर ज्यादा चर्चा नहीं हुई है ...! एक और बात है ...शिव भोले हैं ...जो थोड़ा आगे पीछे किया ...उसपर प्रसन्न ...दे दिए ..भरदम वरदान ...अब दानव / इंसान ..वरदान पाकर पगला गए ....रावण और भस्मासुर की कहानी तो जुबान जुबान पर है ....
कुल मिला कर ...
...."सत्यम शिवम् सुन्दरम" ....
~ १० मार्च २०१३ 

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