Sunday, September 28, 2014

अन्दर कुछ घुलता है ....


किसी भी इंसान को सबसे ज्यादा दिक्कत तब होती है - जब उसको किसी भी कारणवश - किसी जगह / सम्बन्ध / सार्वजनिक जीवन में - उसको अपने व्यक्तित्व का तरलीकरण / हल्कापन / डाईलुशन करना पड़े ! यह प्रक्रिया आसान नहीं होती - क्योंकी जिस परिवेश में वो पलता बढ़ता है - जो आचरण लेकर वो जीवन के प्रती एक नजरिया बनाता है - उसमे उसे कुछ और मिलावट करना पड़े ! व्यक्तित्व का हल्कापन और 'समझौता करना' दोनों दो अलग चीज़ें हैं - समझौता बाहरी होता है - व्यक्तित्व का तरलीकरण अलग है - अन्दर में होता है - वो जो आप एक बचपन से बचाए रहते हैं - उसमे मिलावट ..किस चीज़ को पाने के लिए ...आप हर समय मिलावट तो कर नहीं सकते ...वर्ना एक दिन अन्दर में कुछ नहीं रह जाएगा ...और बिना मिलावट आपका 'वोल्यूम' बढ़ भी नहीं सकता ...:)) 
अन्दर कुछ न कुछ तो घुलता ही है ..पर कब तक ...:))

@RR - २३ जनवरी - २०१४ 

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