Saturday, September 27, 2014

गुनगुनी धूप......


गुलज़ार साहब आज कुछ लिखें हैं - ट्विटर पर - कच्ची ..नरम धूप ..कुछ कुछ ! उनको पढना ही अपने आप में एक गुनगुने धूप की तरह है ! पढ़ा देखा सुना तो बहुत था - पर उम्र के इस पडाव में ही उनको समझ पाया ! :))
दिसंबर में प्रवेश करते ही - फुर्सत के रात दिन याद आने लगते हैं - अब इस बंद केबिन में प्रकृति से दूर - क्या गुनगुना धुप और क्या चिलचिलाती धूप - सारा महिना एक जैसा  
जाडा बोले तो - तसली में गरम पानी कर के - लोहा के बाल्टी में मिक्स कर के - नहा के - बाबाधाम वाला गमछी बाँध के - कांपता बदन - सीने से लगा हाथ - गुनगुनी धूप वाले बरामदा में - फिर - भर थरिया भात - गरम गरम - भाप देता हुआ - गरम दाल में में जमा हुआ घी - आलू गोभी मटर का सब्जी - खा के - छत पर - फोल्डिंग खटिया - एक शाल - एक तकिया - शिवानी / अमृता प्रीतम का उपन्यास - तकिया के बगल में - रेसनिक का फिजिक्स के किताब में - एक कलम ! कुछ देर में फोंफ पर फोंफ - जब तक घर से आकर कोई हडकाये नहीं - "माई करे कुटन पिसावन - बेटा के नाम दुर्गादत्त" ! 
मूड ऑफ - सकून से कोई जीने भी नहीं देता ... :((

~ ४ दिसंबर - २०१२ 

@RR

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