राह चलते हर एक पत्थर को अपना खुदा बनाने की कभी चाहत नहीं रही
जिस पत्थर को खुदा बनाया उसे राह चलते छोड़ने की फिदरत भी नहीं रही ...:))
@RR - १० जनवरी - २०१४
जो सिर्फ मंजिल को देखते हैं ...उन्हें सफ़र का आनंद नहीं मिलता
और जो सफ़र का आनंद लेते है ...उन्हें मंजिल की परवाह नहीं रहती .....:))
@RR - 9 January - 2014
गुलज़ार लिखते हैं -
इक सबब मरने का, इक सबब जीने की
चाँद पुखराज का, रात पश्मीने की...!!
रंजन ऋतुराज लिखते हैं -
"आसमां की हथेली पर चमकता पुखराज सा वो चाँद
मेरे बदन से लिपटी पर पश्मीने सी फिसलती वो रात
वही रात जीने की ...वही रात मरने की ..
जाते जाते बहुत कुछ कह गया था ..वो पुखराज सा चाँद "
@RR - 7 January 2013
जिस पत्थर को खुदा बनाया उसे राह चलते छोड़ने की फिदरत भी नहीं रही ...:))
@RR - १० जनवरी - २०१४
जो सिर्फ मंजिल को देखते हैं ...उन्हें सफ़र का आनंद नहीं मिलता
और जो सफ़र का आनंद लेते है ...उन्हें मंजिल की परवाह नहीं रहती .....:))
@RR - 9 January - 2014
गुलज़ार लिखते हैं -
इक सबब मरने का, इक सबब जीने की
चाँद पुखराज का, रात पश्मीने की...!!
रंजन ऋतुराज लिखते हैं -
"आसमां की हथेली पर चमकता पुखराज सा वो चाँद
मेरे बदन से लिपटी पर पश्मीने सी फिसलती वो रात
वही रात जीने की ...वही रात मरने की ..
जाते जाते बहुत कुछ कह गया था ..वो पुखराज सा चाँद "
@RR - 7 January 2013
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