"शक्ती" |
शक्ती में भी कोमलता है या फिर कोमलता भी शक्ती हो सकती है - हम और आप सिर्फ व्याख्या ही कर सकते हैं - इन सबों से ऊपर होता है - श्रद्धा / भाव - जहाँ सारे शब्द एक तरफ और आपके मन में क्या है वो एक तरफ ! सारा खेल तो इसी मन का ही है - चलिए ..फिर एक बार मन से देवी का आह्वान करते हैं ...जीवन है ...उबड़ - खाबड़ / टेढ़े - मेढ़े रास्ते और लोग मिलते रहेंगे ...हम कितने मजबूत हैं...यानी हमारा मन कितना मजबूत ..सबकुछ इसी पर निर्भर करेगा ...:))
महालया की शुभकामनाएं !!! ...:))
~ 4 October 2013
नवरात्र की शुभकामनाएं ....:))
नवरात्र के साथ ही शीत ऋतू के वसंत का आगमन होता है ...सुबह की हल्की ठंडी बयार भी आपके मन को एकाग्रचित करने में मदद करती है ! शक्ति की आराधना और फिर शक्ती को पाना - पूर्ण शक्ति का एहसास ही आपको अन्दर से 'कोमल - निर्मल - शांत - शीतल' बनाता है ! यह प्रक्रिया आसान नहीं है - सबसे कमज़ोर मन होता है या सबसे मजबूत मन ही होता है - जब सारी शक्ति इस मन में आकर समा जाती है - जब हम सचमुच में पूर्ण शक्ति का एहसास करते हैं - यह एहसास ही अपने आप पूर्ण है !
हम सभी एक भौतिक दुनिया में रहते हैं - जहाँ मन हमेशा चंचल है - स्नान ध्यान / पूजा पाठ / ईश्वर का रूप - आकार / धुप - अगरबत्ती - यह सब कुछ इस कमज़ोर / चंचल / मजबूत मन को एकाग्र करने को ही बनाया गया है !
और जब मन शांत होता है - मन निर्मल होता है - मन कोमल होता है - मन शीतल होता है - मन एकाग्र होता है - मन केन्द्रित होता है - पूर्ण शक्ति वहीँ विराजमान होती हैं !
कहते हैं ..न ..मन से पुकार लो ...शक्ति का दर्शन / एहसास हो जायेगा ...:))
~ 5 October 2013
धर्म एक विशुद्ध फिलोसोफी है - जीवन को जीने का आधार ! जीवन में मजबूत और कमज़ोर दोनों तरह के समय आते हैं - मजबूत इंसान वही है जो इन दोनों समय में धर्म को जीवन दर्शन समझ खुद को मजबूत बनाए रखे !
ईश्वर तो एक ही है - यह सत्य है ! आम इंसानों के वश का बात नहीं जो बिना आकार वाले एक सत्य को स्वीकार कर सके ! जब यह सत्य आप स्वीकार कर लेंगे - कई चीज़ों से ऊपर उठ सकते हैं - मसलन लिंग / जाति इत्यादी !
पर जीना तो हमें इस धरती पर ही एक आम इंसान के रूप में है - फिर हमें एक 'जीवन दर्शन' चाहिए ! यहाँ धर्म हमें सहारा देता है !
इस नवरात्र हम शक्ति की पूजा करते हैं - शक्ति के हर रूप की पूजा करते हैं - जहाँ कहीं भी हमें शक्ति का आभास हुआ - उसको हमने पूज दिया ! और यह प्रक्रिया सिर्फ एक दिन की नहीं है - हज़ारों साल से चली आ रही इस प्रक्रिया में हम आप जैसे लोग कुछ न कुछ जोड़ते चले आ रहे हैं !
दरअसल यह पूजा 'स्त्री के स्वाभिमान' की होती है - प्रकृती ने पुरुष को बलशाली बनाया - उसको भक्षक बनाया - उसको रक्षक भी बनाया - फिर 'स्त्री के स्वाभिमान' की रक्षा का कर्तव्य / धर्म भी उसका ही है ! महिषासुर भक्षक प्रवृती को दर्शाता है - वहीं वो सारे देव जिन्होंने 'दुर्गा' को सजाया - वह एक रक्षक प्रवृती को दिखाता है !
पर पुरुष तो बलशाली है - अहंकारी है - स्त्री को पुजेगा - उसके स्वाभिमान की रक्षा भी करेगा - पर ...किस रूप में ..:)) ? कौन से रूप के आगे वो नतमस्तक होगा ? ...जब स्त्री उसके जीवन में एक माँ के रूप में आती है ....बात यहाँ कोख की नहीं है ...कहते हैं ..न ...एक पत्नी / प्रेमिका को अपने पुरुष के लिए वो सारे रूप दिखाने होते है ...और अंत में माँ के रूप में भी ..आकर ...पुरुष को हमेशा के लिए झुका देना होता है ...और जब तक अहंकार नतमस्तक नहीं हुआ ...पूजा तो शुरू ही नहीं हुई ....:))
~ 6 October 2013
..तो बात हो रही थी ... मन / ईश्वर / शक्ति की ...अब 'शक्ति' शब्द ही स्त्रीलिंग है ...फिर क्या उपाय है ...अब उस शक्ति को पूजना है तो अहंकार / बल को तो उस 'शक्ति' के चरणों में डालना ही होगा ...शक्ति आपके अन्दर समाए ...फिर आपको तो शिव बनना ही होगा ...:))
अब यह शक्ति कहाँ रहती है ? आपकी भुजाओं में ? आपकी इन्द्रीओं में ? मालूम नहीं - पर असल शक्ति तो 'मन' में ही रहती है - और जब 'मन में शक्ति' नहीं - सारे बल / कौशल / विद्या धरे के धरे रह जाते हैं ...सिनेमा तो देखते ही होंगे ...सीता और गीता / राम और श्याम टाईप - एक ही कोख से - एक ही समय में - जन्मे दो इंसान - एक का मन मजबूत तो उसके तेवर अलग और दुसरे का मन कमज़ोर तो उसका तेवर अलग
इसी बात पर एक दोस्त ने एक कहानी सुनायी थी - कैसे हाथी के मन को भी कमज़ोर कर दिया जाता है - हाथी को फंसाने के बाद - उसे जंजीर से लपेटा जाता है - फिर जब वो बंधन तोड़ पाने में असफल हो जाता है - उसका मन कमज़ोर हो जाता है - उसे एक पतले रस्सी से भी बाँधा जा सकता है - उतना बलशाली हाथी भी अपना मन हार - कभी भी उस रस्सी / पतले सिकड़ को तोड़ नहीं पाता है ..:((
अब आप जीवन को कैसे देखते हैं - यह पुरी तरह इस पर निर्भर करता है - आप कितनी उंचाई पर हैं - जैसे पेरिस के एफिल टावर के पहली मंजिल से दुनिया अलग ढंग की नज़र आयेगी - उपरी छोर से एक विहंगम दृश्य नज़र आएगा - अगर आपको उस विहंगम दृश्य का नज़ारा लेना है - खुद को ऊपर की तरफ खींचना होगा - इसके लिए - फिर से आपको "शक्ति" की जरुरत पड़ेगी ! शायद ...मन की शक्ति को ही आत्म विश्वास कहते हैं ...आत्म विश्वास बनाये रखिये ...एक दिन वो विहंगम दृश्य भी नज़र आएगा ...और आप भाव विह्वल हो जायेंगे ...उसी दृश्य की कामना कर के - हम सभी एक अनजान शक्ति के चरणों में खुद को 'समर्पित' कर देते हैं ...!!!
और 'शक्ति' एक स्त्रीलिंग शब्द है ...एक आशीर्वाद की तमन्ना कीजिए ...मन खुद ही प्रफुल्लित हो जायेगा ...और जब मन प्रफुल्लित हो जाए ...समझ लीजिये ..आशीर्वाद मिल चूका ....अब आगे बढिए ...जीवन के संघर्ष में झूज जाईये ....:))
~ 7 October 2013
शक्ति मनुष्य का वो अंश है जो उसे उर्जा से पूर्ण और निडर बनाती है. हमारे धर्म मे इसे 'स्त्री' रूप या 'देवी ' रूप मे क्यों पूजा जाता है ये मुझे नही मालूम.
विनाश के विक्राल रूप मे 'काली' और 'चंडी' ,बलशाली दानव पर विजय पाने के लिये 'दुर्गा' का रूप दर्शाया जाता है....
शक्ति अपना कार्य कर के फिर से शिव मे समा जाती है ....
शिव फिर से ध्यान मग्न हो जाते है...
बचपन की यादों मे कुछ ऐसा ही समझाया गया,जहाँ तक मुझे याद है !!!
गाँव घर में भी यही देखा - कुल देवी भी 'शक्ति' रूप में ही - मेरे परिवार की कुलदेवी 'परमेश्वरी' है - जिन्हें हम 'भंसा घर' ( किचेन ) में रखते हैं - हर शादी विवाह / जनेऊ में उनकी पूजा होती है ! सब कुछ एक तरफ 'कुलदेवी' की इज्ज़त / मर्यादा एक तरफ ! यही तो एक बचपन से हमने देखा और सूना है !
जैसा की मैंने पिछले साल भी लिखा था - हर पुरुष की आकांक्षा होती है - दुर्गा - लक्ष्मी - सरस्वती - तीनो की शक्ति को अपने अन्दर समा सके - पर इन तीनो को संभाल पाना - किसी भी पुरुष के लिए संभव नहीं - शायद देवों के लिए भी नहीं - उतनी श्रद्धा और विशालता लाना संभव ही नहीं ....और यहीं आजीवन हम इन्ही के इर्द गिर्द घूमते रह जाते हैं ...:))
~ 8 October 2013
आज नवरात्र का पांचवा दिन है - आज के दिन 'स्कन्दमाता' की पूजा होती है - जो सिंह पर सवार हैं और उनके गोद में स्कन्दकुमार बैठे हुए हैं ! यह 'शक्ति' का ममतामयी रूप है और 'स्कन्दमाता' को ज्ञान की देवी भी कहा जाता है - कई कहानी और मिथ्य है - कहते हैं शक्ति के इसी रूप की आराधना कर के 'कालीदास' ने रघुवंशम एवं मेघदूत की रचना की ! विधोतमा ने जरुर ही किसी 'शुभ घड़ी' कालीदास को धिक्कारा होगा ..:))
शक्ति के कई रूप है - अनन्त ! सोचने की शक्ति - समझने की शक्ति - याद करने की शक्ति - लिखने की शक्ति - किसी के मन को पढ़ लेने की शक्ति मालूम नहीं क्या क्या और कहाँ नहीं - अपमान सहने की भी शक्ति ...:))
नर यो या नारी - हर इंसान अन्दर से पूर्ण होना चाहता है - इसी पूर्णता को पाने की चाहत में वो 'शक्ति' का आह्वान करता है - कई बार वो उसे पा भी लेता है - एक तपस्या है - पर 'शक्ति' का दुरूपयोग इंसान को क्षण भर में शक्तिविहीन भी बना देता है ...
और वो इंसान ही इंसान क्या ...जिसे अपने 'शक्ति' का 'अहंकार' नहीं ...और दुर्गा का आहार ..मनुष्य का अहंकार ही तो है ...:))
~ 9 October 2013
या देवी सर्वभूतेषु माँ कात्यायनी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
आज नवरात्र के छठे दिन 'माँ कात्यायनी' की पूजा होती है ! कहते हैं - माँ अपने पिता के घर जन्म लेने के बाद ..पति के गोत्र को न अपना कर अपने पिता के गोत्र को अपनाया - संभवतः यह 'पिता पुत्री' के बीच के उस भावुक सम्बन्ध को दर्शाता है - जिसे सिर्फ एक पिता और पुत्री ही समझ सकते हैं !
आप हिन्दू धर्म की कथाओं को पढ़ें - तब भी एक समाज होता था - ऋषी - मुनि / राजा / देव / असुर ....कहीं न कहीं ..कई कथाओं में ...एक पिता भी होता था ..! मैंने कई बार लिखा है ...जब 'सीता' की अग्नी परीक्षा हो रही होगी ...तब अगर जनक जिन्दा होंगे ..उनपर क्या गुज़री होगी ..!
जैसा की मैंने कल भी लिखा - इंसान सम्पूर्णता की तरफ बढ़ना चाहता है - भावनाओं की भी सम्पूर्णता होती है - उसी में एक भाव है - एक पुत्री का पिता होना और उस पुत्री को 'देवी' रूप में पूजन - यह पूजन किसी मंदिर में नहीं होता - यह एक पुरुष अपने मन में करता है और हर पल करता है !
मैंने गरीब से गरीब और अमीर से अमीर के यहाँ भी देखा - पिता - पुत्री के बीच भावनाओं का एक जबरदस्त बंधन - बिना कुछ कहे - बिना कुछ बोले - अपनी पुत्री की बात समझ लेना या अपने पिता की बात को समझ लेना !
पुत्र अपने पिता के तरफ उंगली उठा कई बातें कह सकता है - पर एक पुत्री ....जो उसे 'खोईंचा' में मिला ...आजीवन उसे बिना किसी शिकायत अपने पास रखती है !
मैंने अपने व्यक्तिगत जीवन में किसी भी पुत्री को अपने पिता से कोई शिकायत होते नहीं देखा है - कभी नहीं - और फिर एक बार 'देवी के इस रूप' के आगे .....पुरुष का अहंकार नतमस्तक होता है .....
और क्या लिखें ....
~ 10 October 2013
या देवी सर्वभूतेषु माँ कालरात्रि रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
हे देवी ...हमें सभी तरह के भय से मुक्त करो ... !!
आज महासप्तमी ....देवी का नेत्रपट खुल गया ...
विराट ! मनोरम ! श्रद्धा ! विशाल ! भव्य !!!
जैसे इस रूप का ही इंतज़ार था ! देखते ही ..खुशी से मन ...कोई भय नहीं ...मोटी काजलों से अपनी तरफ एक जबरदस्त आकर्षण पैदा करती वो आँखें ....जहाँ आप क्षण मात्र भी ठहर नहीं सकते ! विशाल रूप ....जैसे सभी देव स्तुति में लग गए ...धुप की खुशबू से पूरा पंडाल भर गया होगा ...आरती के वक्त ...श्रद्धा से पुरे शरीर में सिहरन ! देवी को साष्टांग दंडवत !
"शक्ति का पट तो खुल गया ...पर इनका ये विशाल रूप में स्वागत कौन करेगा ...किसकी हिम्मत जो इनके पास जाए ...इन्ही का कोई रूप जायेगा ..घर की महिलायें.. ..निकल गयी होंगी ...देवी के स्वागत में ..उस भव्य रूप के स्वागत में " - हम तो बस दूर से ..उस रूप में मंत्रमुग्ध ...
धन्य हो वो कुम्हार ...जिसने महालया के दिन ही देवी की आँखों में रंग भर दिया ...इस भव्यता ..इस रूप ..की खुशबू ..कहाँ से आई ..पूछिये उस कुम्हार से ..जिसने 'जहाँ' से मिटटी लायी ...देवी को पुजिये ....किसी भी रूप में ....वो निर्मल है ! एक पुरुष इसी भव्यता की कामना रखता है ...जहाँ वो मंत्रमुग्ध हो जाए ...अपने प्रेम को श्रद्धा से परिपूर्ण करे ...बस नज़र का फेर है ...कुम्हार की नज़र अलग है ...पुजारी की नज़र अलग है ...और मेरी नज़र अलग है ...मूरत तो एक ही है ...:))
~ 11 October 2013
या देवी सर्वभूतेषु माँ गौरी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
... हे माँ, मुझे सुख-समृद्धि प्रदान करो...
'अष्टवर्षा भवेद् गौरी' - अर्थात इनकी आयु आठ वर्ष की मानी गयी है और तपस्या के कारण इनका वर्ण गौर हो गया !
संभवतः यही एक कारण होगा - आज इनकी 'कन्या रूप' की पूजा की जाती है ! मैंने पिछले साल भी लिखा था - हमारे यहाँ कुंवारी कन्या पूजन का प्रचलन है - हालांकी यह सृष्टी पुरुषों के अहंकार के मनमुताबिक रची गयी - फिर भी कुंवारी कन्या को पुरुष अपने से श्रेष्ठ मानता है - और संभवतः यही कारण होना चाहिए की - विवाह में - सिंदूरदान के पहले - मंडप पर कन्या वर के दाहिने तरफ बैठती है - जो हमारे सभ्यता में है - हम अपने से श्रेष्ठ को अपने दाहिने तरफ बैठाते हैं ..!
भौतिक दुनिया में 'समाज' ही सबसे उंचा है - सबसे शक्तिशाली है और समाज अपना मार्गदर्शन 'धर्म' के अनुसार करता है और समाज का संचालन 'राजनीति' करती है - जो इस भौतिक दुनिया की सबसे केन्द्रित शक्ति है !
अक्सर राजनेता देवी के जबरदस्त भक्त होते हैं - हालांकी सार्वजनिक जीवन व्यतीत करने के कारण उनके पास समय का आभाव होता है - फिर कई राजनेता देवी के किसी साधक के काफी करीब हो जाते हैं और उनके आशीर्वाद से देवी की शक्ति को प्रसाद के रूप में ग्रहित करते हैं !
..शक्ति आती है ..और शक्ति क्षीण भी होती है ..जब शक्ति का एहसास हो ..सुकर्मो से शक्ति अपनी आयु से ज्यादा दिन ठहर सकती है ..अब सुकर्म की परिभाषा 'समाज' तय करता है ..काल के हिसाब से परिभाषा बदलती रहती है ..अब आप किस काल में जन्म लिए हैं ...उस वक़्त के समाज के हिसाब से आपको अपने कर्म करने होंगे ..यह मान कर 'समाज' ही सर्वशक्तिमान है ..हर इंसान का कर्त्तव्य है ...वो जिस समाज से आता है ..उसको वो अपने कर्मो से मजबूत बनाए ..
कर्त्तव्य ही असली शक्ति है ...
~ 12 October 2013
या देवी सर्वभूतेषु माँ सिद्धिदात्री रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।
महानवमी !! माँ सिद्धिदात्री !!
आज की रात माँ अपने साधकों को आठ सिद्धि - अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व और वशित्व से परिपूर्ण करती हैं ! इसके बाद साधक को किसी भी चीज़ की कामना नहीं रह जाती - वह खुद को पूर्ण महसूस करता है !
पर इस सिद्धि को पाया कौन ? किसने चेहरे पर कभी कोई कामना नज़र नहीं आयी - कभी फुर्सत में 'शिव' की कल्पना कीजिएगा - कामनाविहीन - एक शुन्य में -"शिव" !! शक्ति बगैर शिव एक शव हैं !
इस शक्ति को सच में अपने अन्दर समाहित करने के लिए - शिव बनना होगा - जो इंसान के वश में नहीं है - फिर भी हर इंसान के अन्दर से एक 'शिव' है - जो शक्ति के आने से जागता है - जो देर तक जगाये रखा - वही साधक है ...:))
प्रेम में .."शिव - शक्ति" से बड़ा कोई उदहारण नहीं है ..शिव का शक्ति के लिए बेचैन होना और शक्ति का शिव के लिए सबकुछ त्याग करना !
आसान नहीं है - इस ब्रह्माण्ड के सच को एक ही जनम में समझ लेना - तभी तो 'सात जनम' लेने पड़ते हैं ....
बढ़िया लगा ...इस नवरात्र आप सभी तक अपने मन की बात को कहना ....!!
शिव और शक्ति दोनों आप सभी के अन्दर समाहित हों ...इन्ही "शब्दों" के साथ ....
~ 13 October 2013
~ रंजन ऋतुराज
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