'खूंटी' कहते हैं ..हम सभी ! दीवार से लगा - लकड़ी का 'खूंटी' - जिस पर कपडा टांगते हैं ! छोटे शहर / गाँव में खूंटी देखने को मिल जाता है - महानगर में वार्डरोब ...बहुत दिक्कत होती है ...दिन भर का थका आदमी ...इतना थक जाता है ...अब वार्डरोब खोल ..कौन उसमे कपडा टाँगे या कहीं और रखे ...पहले खूंटी होता था ..घूम फिर के आईये ..बुशर्ट ( कमीज़ ) को टांग दीजिये ! एक कमीज़ के ऊपर दूसरा ..उसके ऊपर तीसरा ! हॉस्टल में रहते थे ...दरवाजे के पीछे स्टील वाला खूंटी ..और सब में एक जींस लटका हुआ ..बिना धोये लगातार पंद्रह दिन वही जींस ! हैंगर रखने वाले लड़के ...को हम सभी बड़े अजीब नज़र से घूरते थे ..पर वो बड़े मैच्यूर होते थे ..बढ़िया से कपडा को हैंगर में लटकाया और फिर खूंटी ...बाबा ..फिर से खूंटी में ही टांगना है ..फिर हैंगर क्यों ...! 'क्रीच' टूटे नहीं ...अंकल लोग टाईप ...लड़का हो लड़का टाइप रहो ..हद हाल है ..यार !
जब खूंटी भरने लगा ...फिर पलंग के चारों तरफ ..मच्छरदानी वाला डंडा के कोना पर कपडा टंगाने लगा ...चिम्पू का बुशर्ट गायब ...कहाँ गया रे ...पता चला ...खूंटी के अन्दर गायब है ..उसके बुशर्ट के ऊपर ..पंद्रह और बुशर्ट !
बचपन में ..घर में शादी बियाह वाले मौसम में ..कोई फूफा ..मामा टाईप लोग आता था ...आते अपने कमरे में खूंटी खोजता था ...फिर हम छोटे लोगों को बुलाता ...बोलता ..जाओ अंगना से हैंगर लेकर आओ ...उनके अचकन - बचकन ..को हैंगर में लटका के ...पूरा घर में खाली खूंटी खोजते रहे ...मूड ऑफ हो गया ...किसी स्टोर रूम में ..धीरे से रख दिए ...अब वो मामा / फूफा टाइप आइटम लोग ...लौटने वाले दिन ...हमको खोजता ...मेरा कपड़ा कहाँ टांग दिए हो ...दू घंटा से खोज रहे हैं ..मिलिए नहीं रहा ...महाराज ..हम ठेका लिए हैं ...देखिये ...कहीं बिगाईल ( फेंका ) होगा ....हा हा हा हा ...
@RR - २१ सितम्बर - २०१२
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