किसी भी रिश्ते की जान् होती है - संवाद ! जब रिश्ते में संवाद खत्म हो जाए - रिश्ते मुरझा जाते है - रिश्ते अंतिम दम तक जीने कि कोशिश करते हैं ..शायद संवाद हो जाए वो उस रिश्ते की कुछ पत्तियां हरी भरी हो जाएँ ! इसी इन्तजार में ..न् जाने कब 'जड़' भी सुखने लगता है और फिर एक दिन वो रिश्ता खत्म हो जाता है..मर जाता है ! अहंकार किसी भी रिश्ते का दुश्मन है एक बार हरे भरे रिश्ते को इसने छू लिया फिर उस रिश्ते को मुरझाने से कोई नहीं रोक सकता ..कोई भी नहीं ..एक पक्ष झुक भी गया ..फिर भी वो अहंकार रिश्ते के किसी टहनी में चुप चाप बैठा होता है ..अपने वक्त का इंतज़ार करता रहता है ...दूसरा पक्ष कब अपने अहंकार के फुंफकार से डस ले ..पता नहीं चलता !
~ रंजन ऋतुराज / २३ मार्च - २०१२
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