जब कभी दिल्ली / इंदिरापुरम आता हूँ - इस जगह से थोडा सा रिश्ता तोड़ लेता हूँ और जो बाकी बचता है उसे छुपा लेता हूँ - कहीं कोई देख न ले - फिर उसे अपने साथ लेकर पटना चला जाता हूँ - वहीँ अटैची में पड़ा रहता है - आलमीरा के ऊपर रखा हुआ ! फिर वहां से आने के समय - अटैची खोलता हूँ - वो जो बचा हुआ रिश्ता होता है - फिर से बढ़ जाता है - फिर दिल्ली आना होता है - खुले हुए इस अटैची - इस बड़े फ़्लैट में - फुदुकने लगता है - फिर वापस लौटने के दिन उसको थोडा तोड़ - फिर से उसे अपने अटैची में बंद कर देता हूँ ...
@RR - १२ मार्च २०१४
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