Thursday, September 25, 2014

बाबाधाम यात्रा

बाबाधाम यात्रा : 
ईश्वर का कोई रूप नहीं - हर धर्म से ऊपर की वो अदृश्य शक्ती है - जिसे इस धरती का हर एक कण समझता है - इंसान आया - परिवार बना - समाज का गठन हुआ होगा - फिर धर्म बना होगा - आकार के जिद में जिस हर चीज़ में इंसान को आनंद महसूस हुआ होगा - इंसान उस रूप में भगवान् की रचना कर दिया - ग्रंथों में लिख दिया - यह प्रोसेस हजारों साल पुराना है - आगे हज़ारों साल तक चलेगा ! 
हर एक धर्म में भगवान् तक पहुँचने / दर्शन के लिए कुछ मील लम्बे पैदल यात्रा का प्रचलन है - हज यात्रा है - बाबाधाम है - वैष्णो देवी - केरला में अयेप्पा मंदिर - कैलाश मानसरोवर / अमरनाथ इत्यादी ! इसका कुछ अध्यातिक और दार्शनिक महत्व रहा होगा - तभी ऐसी यात्राएँ सैकड़ों साल से प्रचलन में है ! 
मैंने कल ही करीब 110 किलोमीटर की लम्बी बिहार में सुल्तानगंज से देवघर की यात्रा की ! बहुत कुछ महसूस किया - लिखना चाहूँगा ! आपमें से कई लोगों को यह अनुभव रहा होगा ! 
जल उठाने के बाद - हम करीब चालीस लोग एक साथ चल पड़े - बस कुछ कदमों के बाद - हम सब में दूरी बनने लगी - कोई तेज़ रफ़्तार से तो कोई धीमी रफ़्तार से ! जिसकी रफ़्तार आपके बराबर है - आप उसके साथ ! "शरीर थकने लगता है - मन उत्साहित रहता है " ! कुछ और किलोमीटर चलने के बाद - आपका मन भी थकने लगता है - जब मन थोड़ा भी थकता है - शरीर तेज़ी से आपके मनोबल को नीचे करता है " - यहीं से असल खेल शुरू होता है - अब आप बिलकुल अकेले हो जाते हैं - मन कहीं एक ऐसी जगह केन्द्रित हो जाता है - जहाँ या तो आपको अत्यंत सुख मिल रहा होता है या दुःख ! पहला अनुभव - हज़ारों लोग आपके साथ पर आप एकदम अकेले ! दूसरी रात - दम टूटने लगा - पुरी टीम दो घंटे पहले ही किसी धर्मशाला में - अब बस तीन किलोमीटर और जाना है - पर एक कदम भी चलना मुश्किल ! 
हर रोज मात्र तीन घंटे ही नींद - किसी धर्मशाला में - एक प्लास्टिक बिछा के - बिना तकिये ! मै बुरी तरह अन्दर से हिल चुका था - एक पूरा दिन अपनी यात्रा गाडी से किया और एक धर्मशाला में अकेले दिन भर रुका ! कई मंथन और विचार ! फिर अगले दिन अकेले - पर पिछले दिन के "सिख" के साथ - कल के अनुभव को जो सिखा उसके बल पर अगला दिन ! 
खैर सोमवार को सुबह के प्रथम दर्शनार्थी होने का अवसर मिला - बिहार सरकार के कुछ एक मंत्री भी साथ में थे - पर अनुभव बेमिशाल था ! अंतिम चरण में बहुत कुछ समझ में आया - क्यों हर ऐसी लम्बी यात्रा में कुछ शब्द दोहराने को बोला जाता है - जैसे "बोल बम" - ऐसी जोर से बोले गए शब्द - आपके मन को केन्द्रित करते हैं ! 
दरअसल "मन ही ईश्वर" है - सारा खेल यहीं होता है - सारा दुःख या सुख यहीं विराजमान होता है - सारा आनंद और कष्ट यहीं होते हैं ! 
बहुत कुछ लिखा जा सकता है - नहीं लिख रहा हूँ - कुछ अनुभव बेहद व्यक्तिगत होते हैं और उनका सम्मान करना चाहिए ! 
मै कुछ माँगने या कुछ मन्नत पूरा होने के कारण नहीं गया था - अकेले में खूब एन्जॉय भी किया - कहीं घोड़े पर सवार फोटो खिंचवाया तो कभी पैरों में मरहम पट्टी - किसी दिन...दिन भर भूखा रहा तो किसी दिन सिर्फ मैंगो ड्रिंक्स ! 110 किलोमीटर की यात्रा में - करीब 75-80 किलोमीटर पैदल और बाकी कार में ...बहुत कुछ लिखने को था ...नहीं लिख रहा हूँ ...फिर कभी ..:))
~ २९ जुलाई २०१४ 

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