Monday, September 29, 2014

एक कहानी - मेरा भाई ....


एक और कहानी ...:)) 
फूफा जी आते थे - विली के जीप से - भारी भरकम शरीर वाले - बड़ी बड़ी मुछों वाले - जाड़ा के दिन में थ्री पिस सूट और गर्मी के दिन में सिल्क का कुरता - एकदम पसीने से लथपथ - गर्मी के दिन में उनके आते ही - एक बाल्टी शरबत घोला जाता था - रूह आफजा डाल कर ! साथ में उनके ढेर सारे चर चपरासी - सभी शरबत पीते थे ! फूफा जी जोर का ठहाका लगाते थे - फिर आँगन में आते - दादी और माँ से गप्प फिर दरवाजे पर ओसारा पर बाबा और बाबु जी से गप्प - बहुत बड़े इंजिनियर थे - मेरे इलाके में जो नहर खोदी जा रही थी वो उनके ही देख रेख में हो रहा था ! कभी कभी फुआ भी आती थी - मेरे फुफेरे भाई बहन भी आते थे - सुन्दर सुन्दर कपडे और काला जूता और लाल मोज़े के साथ - अंग्रेज़ी में बोलते थे - वो अपने खिलौने अपने साथ लाते - हम सभी मिल कर खेलते - लौटते वक़्त वो अपने खिलौने मुझे देना चाहते थे - मै थूक घोंटते हुए - मना कर देता था - माँ आँगन से इशारा करती - नहीं लेना है - मै उन खिलौनों को बस एक नज़र देख - जोर से दौड़ते हुए आँगन में जाकर माँ से लिपट जाता था ! फिर फुआ आँगन में आती - कुछ रुपैये हाथ में पकड़ा देती - मै मुठ्ठी में जोर से पकड़ लेता था - माँ से नज़रें चुराते हुए ! घर में किसी चीज़ की कमी नहीं थी - पर आज लगता है - नौकरी पेशा वाले परिवार नहीं होने के कारण - रहन सहन में 'चिकनाई' नहीं थी ! 
बाबु जी खिलौने नहीं खरीदते - कभी पास के शहर गए तो उधर से ढेर सारे पत्र पत्रिका खरीद लाते - वही मेरे दोस्त और खिलौने थे - नंदन , पराग ! बाबु जी नौकरी नहीं करते थे - बाबा के इकलौते थे - वो फुआ भी बड़े बाबा की इकलौती बेटी - फूफा जी ससुराल में कोई संपती लेने से मना कर दिए थे - बड़ी इज्जत मिली थी फूफा जी को मेरे पुरे गाँव में ! मेरे बाबु जी डबल एमए थे - अंग्रेज़ी से - पढने का बहुत शौक - दालान के कोने में उनकी अपनी लाईब्रेरी होती थी - बाबा को नहीं पसंद - बाबु जी नौकरी करें - कुछ दिन कर के छोड़ दिए - एकदम चुप रहते थे - मै भी अकेला रह गया - एक बड़ा भाई था - मालूम नहीं क्या हुआ - कोई कहता कोई साधू उठा के ले गया - हम चारों की एक तस्वीर थी - मै माँ के गोद में और भाई बाबु जी के गोद में - स्टील वाले फ्रेम में लगी वो तस्वीर माँ के आलमीरा में रहती थी - बाबु जी उस आलमीरा को कभी नहीं खोलते थे - माँ हर रोज उस आलमीरा को खोलती थी फिर अंचरा से अपने आंसू पोंछ - भंसा घर में व्यस्त ! माँ बाबु जी में बात भी बहुत कम - आज तक दोनों को साथ बैठ हंसते नहीं देखा ! घर में एक सन्नाटा रहता था ! दिक्कत तब होती - जब कोई दूर दराज के संबंधी आते - बातों बातों में भाई की चर्चा होती और वो पल माँ मुझे जोर से पकड़ लेती थी ...आज भी लगता है ...वो लोग ऐसे सवाल क्यों करते थे ....
समय के साथ ..मै बड़ा होते गया ....मेरा इंजीनियरिंग में हो गया - सिविल ब्रांच नहीं मिला - बाबा बोले - जीप वाला इंजिनियर नहीं बनेगा - मै जोर से हंसा था - बाबा ..जमाना बदल गया है ! 
मै उस फोटो को लेकर होस्टल आया था - बस एक दोस्त को बताया - बाबु जी के गोद में कौन है - फिर शायद पुरे होस्टल को पता चल गया था - कोई दोस्त मुझसे कोई सवाल नहीं पूछता था -कोई मेरे भाई का नाम भी नहीं पूछता था - मै बस पढता था - कोई गलत आदत नहीं - ईश्वर और अध्यात्म को महसूस करने लगा था - शायद जीवन में कोई कमी लगती थी - तभी तो अध्यात्म आता है - एक रोज बहुत मन किया हरिद्वार भाग जाऊं - अगले दिन सुबह निकलने का तैयारी कर लिया था - बिना किसी को बताये - और उसी शाम बाबु जी आ टपके - वो शाम अजीब थी - एक शाम से अगली सुबह बाबु जी संसार और सांसारिक भोग की बातें बताते रहे - एकदम करीबी दोस्त की तरह - लगा ईश्वर ने ही उनको अचानक यहाँ मेरे पास भेज दिया है - मैंने बाबु जी का यह रूप कभी कल्पना भी नहीं किया था -हर पल सीने से सटाए रहने वाले बाबु जी इस ज़िंदगी की दौड़ में दौड़ने को उकसा रहे थे - अगली सुबह वो प्रोफ़ेसर माथुर साहब के यहाँ ले गए - माथुर साहब के यहाँ दो घंटे सिर्फ टेक्नोलॉजी की बात - अमरीका की बात - माथुर साहब कहने लगे - कृष्ण के तीन रूप - बाल रूप / प्रेमी रूप और कर्म रूप - क्यों न इस कर्म रूप को अपनाया जाय - फिर वो प्रोजेक्टर पर मेरे क्षेत्र में हो रहे तरह तरह की विकास दिखाने लगे - अंत में एक लाईन कहे - शायद तूम समाज को कुछ देकर - ईश्वर को ज्यादा खुश कर सकते हो - कुछ भी कर लों ...तुम्हारा खोया हुआ भाई वापस नहीं आएगा और जब उसे आना होगा - कोई रोक भी नहीं सकता ....
ज़िंदगी बदल गयी - कुछ दिन नौकरी कर के - अपना व्यापार शुरू किया - टेक्नोलॉजी में - माँ बाबु जी को पहली बार हंसते हुए देखा - जब मेरा प्रथम बेटा हुआ - बाबु जी बड़ी हिम्मत से उसका नाम फिर से रखा ..." दक्षिणेश्वर " - मेरे भाई का नाम - ऐसे जैसे ईश्वर ने उसे लौटा दिया .....
आज मेरी कंपनी का नाम भी - "दक्षिणेश्वर टेक्नोलॉजी" है - सभी मित्र समझते हैं - मेरे बेटे के नाम पर है कंपनी का नाम - पर वो मेरा भाई है ................दक्षिणेश्वर - दक्षिण का ईश्वर - बाबु जी ने बड़े प्यार से भाई का नाम रखा था .....मेरा भाई ....

@RR - ५ मई - २०१४ 

2 comments:

nishant jha said...

अध्यात्म किसी भी रुप में आ सकता है कभी बाढ़ की तरह...तो कभी बहार बन कर.. जीवन से पूर्णत: लयबद्ध हो जाना मनुष्य जगत का एकमात्र प्रयोजन है| दोनों भाई उपरोक्त दोनों परिस्थितियों के उदाहरण प्रस्तुत करते हैं..

और क्या लिखूं अब आप ही कुछ कहें धन्यवाद

ANJANI said...

रूला दिए महाराज। पढ़ते वक्त लगा जैसे मैं ख़ुद देख रहा हूँ घटनाक्रम को। बाकि संघर्ष तो जीवन है ही। लेखनी को नमन।