Monday, September 22, 2014

दिन का चाँद ....:))

बहते ख्वाब भी कहीं रुक से जाते हैं - थोड़ी देर के लिए ही सही - तेरी आखों में डूब जाते हैं - थर्राते होठों से कुछ निकल पड़ते हैं - रात का इंतज़ार कौन करे ..चाँद भी कभी कभी दिन के नीले आसमां में निकल आता है ...
फिर ...फिजाओं में.. ..कुछ गुलाबी ख्वाब तेरी खुशबू से महक जाते हैं ....:))
~ २५ दिसंबर २०१३ 

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