Wednesday, September 17, 2014

हिंदी किसके कन्धों पर ?

हिंदी की जिम्मेदारी किन कन्धों पर होनी चाहिए - यह महत्वपूर्ण है ! सबसे ऊपर हैं - हिंदी के पत्र पत्रिका और पत्रकार - ये वो हैं जिन्हें हम हर रोज सुनते पढ़ते हैं - हिंदी को आकर्षक बनाने की जिम्मेदारी इन कन्धों पर है - जब तक यह आकर्षक नहीं बनेगी तब तक यह जन मानस को अपील नहीं करेगी और समाज हमेशा अपनी खूबी और गन्दगी दोनों ऊँचे तबके से लेता है - "बहाव हमेशा ऊपर से निचे होता है "- हिंदी को समाज के उस तबके में अपनी पैठ बढानी होगी ! कई बेहतरीन पत्रिका बिलकुल नीरस हो चुकी हैं - कालिदास / दिनकर / निराला / जयशंकर प्रसाद को लोग हर रोज नहीं पढ़ते हैं -
दूसरी बात - साहित्य / सिनेमा इत्यादी हमेशा काल को दर्शाता है - आज के दौर के बच्चों को प्रेमचंद के किस्से की कल्पना में ढालने में बहुत दिक्कत होगी - जुम्मन शेख जैसे पात्र जब तक उनके आँख के सामने नहीं आयेंगे - वो कहानी का मर्म नहीं समझ पाएंगे - समाज का एक बड़ा तबका शहरों और विदेशों में पल बढ़ रहा है - यह वही तबका है जो हर चीज़ों का मापदंड निर्धारीत करता है - दुसरे भी उसी को फौलो करते हैं - निराला / दिनकर इत्यादी के अलावा भी कई साहित्यकार हैं जिन्हें पढ़ा जाता है - उनको जमाने के हिसाब से अपनी कथाएं लिखनी होंगी ..लिखी भी जा रही हैं ...पर मौलिकता के चक्कर में वो कभी कभी गंदी भी दिखने लगती हैं ....
कई बार समाज लिड करता है - कई बार समाज को दिशा दिखानी पड़ती है - हिंदी अखबारों के पत्रकारों के लिए यह बहुत आसान है - पर दुःख है - अंग्रेज़ी की नक़ल में वो बड़े बेढंगे दिखते हैं और तब एक दर्द होता है ! जो बढ़िया लेख हैं - समाज में जो कुछ असल में हो रहा है वो सब उसी रूप और रंग में हिंदी में भी नज़र आनी चाहिए !
हाँ ...पढने वालों को भी अपनी परीपक्वता बढानी होगी ...और मेरा यह मानना है ...परिपक्वता पढ़ते पढ़ते बढ़ जायेगी ....

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