Tuesday, September 23, 2014

मन ....

मन की बातें - मन ही जाने - मन पवित्र - मन अपवित्र - मन साफ़ - मन गन्दा - मन हैवान - मन भगवान् - मन शुद्ध - मन अशुद्ध - मन में शक्ती - मन में भक्ती - मन से प्रेम - मन से घृणा - मन से दुलार - मन से फटकार - मन में सब कुछ - मन में कुछ नहीं ....
ये मन क्या है ...दिल / दिमाग / आत्मा ...ये है ..क्या ? कभी ये इतना चंचल ...सागर के तूफ़ान जैसा तो कभी झील के पानी सा शांत ...कभी ये मेरे वश में ...कभी इसके वश में हम ...मन में विचार - मन में सुविचार - मन में कुविचार ...मन की बातों को जुबान मिल जाए ..जीवन में भूकंप आ जाए ...जुबान न मिले ...अन्दर भूकंप आ जाए ...मन से मानो तो पत्थर भी देवता ...मन से ना मानो तो देवता भी पत्थर ...मन..मन..रे मन ...मन में छुपा ...मन से बाहर ...मन में तुम ...मन में हम ....
जो है ..मन से योगी ...वही है ..असल योगी ...मन को बाँध दिया ...जगत बंध गया ...मन खुला रहा गया ...जीवन को ही चर गया ...मन से अर्पण किया - मन से समर्पण किया - कोयला भी हीरा बन गया ...मन वहीँ बस गया ...जहाँ उसको सुकून मिल गया ...
@RR
~ 29 November 2013
दुनिया में सबसे आज़ाद क्या है - आपका 'मन' ! क्या क्या सोचता है और क्या क्या नहीं सोचता है  कहाँ नहीं जाता है और कहीं नहीं रुकता है ! जहाँ आप नहीं जा सकते - आपका आज़ाद मन क्षण में चला जाता है - है कोई जो रोक सके .. :)) कौन बाँध पाया है ..इस मन को - कौन रोक पाया है - इस मन को ! 
मन से राजा - मन से दरिद्र - मन से अपना - मन से पराया - मन से दुश्मन - मन से साथी - मन से नफरत - मन से श्रद्धा ! 
ऐसा लगता है ...जब सब कुछ ...ये मन ही है ...फिर बाकी क्या है ?? :))) 
~ RR
~ २९ सेप्टेम्बर - २०१२ 


कभी कभी एक लम्बी छुट्टी पर जाने को मन करता है ...कहीं किसी पहाड़ पर ...एक रूम वाले गेस्ट हाउस में ...जिसकी खिड़की एक हरे भरे पहाड़ की तरफ खुलती हो ...बारिश का मौसम हो ...और मेरे संग कोई न हो ! एक कमरा ...जिसमे सैकड़ों हिंदी साहित्य और जीवन दर्शन की किताबें ...कमरे में एक तरफ एक खूब ऊँचा ...पलंग ...पलंग में सालों भर लटका हुआ एक मच्छरदानी ....एक तरफ महोगनी की रीडिंग टेबल और कुर्सी ....और एक रामू काका टाईप खानसामा ...जो हर शाम शुद्ध भोजन दें ! 
एक देर सुबह हो ....इतनी देर हो ...जब तक तीन कप चाय ठंडी न हो जाए ....फिर बालकोनी में बैठ ...खूब देर तक पहाड़ों की हरियाली को ताकना ....गर्म चाय के बड़े प्याली को दोंनो हाथ से पकड़ ...कई घंटे पहाड़ों को देखना ...वो हरे भरे पहाड़ और उनके पेड़ जो हलके बारिश की फुहार में भींगे खड़े हैं .....
@RR
20 April 2013 

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