Tuesday, September 23, 2014

इश्क .....

....बहुत दबंग होता है ..इश्क ...दरवाजा बंद कर दोगे ...रोशनदान से घुस आएगा ....नहीं घुसने दोगे ....चौखट पर सातों जनम गुजार देगा ...बेहतर है ...उस इश्क को इज्जत के साथ ..अन्दर आने दो ...महसूस करो ....चुप चाप बैठा रहेगा ...कभी कुछ मांगे तो पूछना ...तुम तो इश्क हो ...और इश्क को क्या चाहिए ...या तो सबकुछ या फिर कुछ नहीं ...:)))
वर्ना ...दिल्लगी का ..कोई पहर नहीं होता ...@RR
24 September - 2014
इश्क एक ख़ूबसूरत एहसास है ! मन एक शांत झील की तरह है – तुम्हारी खुबसूरत निगाहें उस पत्थर की तरह हैं जो झील में जाते ही ‘इश्क’ की तरंग पैदा करती है – मै झील के किनारे से उन तरगों को देख खुश हो जाता हूँ – फिर वो तरंग खुद ब खुद शांत हो जाती है – फिर झील के दूसरे किनारे से किसी और ने एक पत्थर फेंक दिया ..ये क्या हुआ ..कह कर झील से दूर चला जाता हूँ .....बहुत दूर ..उस पर्वत पर् ..जहाँ से कोई झील नज़र ना आये ....
@RR
21 फरवरी - २०१४
'इश्क की चाशनी' में डूबे रहते हो ..
ए अजनबी ..बोलो..तुम कौन हो ..
कभी जाने तो कभी अनजाने लगते हो ..
ए अजनबी ..बोलो..तुम कौन हो ..
@RR
१० मार्च - २०१२

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