सुबह तड़के ...पौ फटने से भी पहले ...सूरज की पहली किरण के साथ ...शब्दों की बाग़ से ...तेरे लिए कुछ शब्द अपनी टोकरी में ले आता हूँ ...वो ओस की बूंदों में भींगे शब्द ...चमेली चंपा सी खुशबू लिए शब्द ...गुलाब से महकते शब्द ...इत्र की खुशबू को लपेटे वो मासूम शब्द ...तुम भी तो मेरे शब्दों की टोकरी के सामने ही बैठ जाते हो ..कहते हो ..अपने शब्दों का एक गजरा बना दो ..मेरे बालों में सजा दो ...चंपा - चमेली की खुशबू लिए मेरे शब्दों का गजरा ...मन कब भरता है ...अंत में कह ही देते हो ...ये शब्दों की टोकरी ..मुझे दे दो ...दाम क्या लोगे मुझे बता दो ..मै निःशब्द ...मन ही मन कहता हूँ ...कब किसी ने पुरी टोकरी इतने हक़ से माँगा ...दुनिया तो एक गजरे में ही खुश हो जाती है ....ये हक़ ही दाम है ...
कभी आना मेरे शब्दों के बाग़ में ...:))
~ RR
4 September , 2013
कभी आना मेरे शब्दों के बाग़ में ...:))
~ RR
4 September , 2013
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